Description
महान् कथाकार और हिंदी साहित्य जगत् में कहानी को एक संपूर्ण वि/ाा के रूप में स्थापित करनेवाले श्री जयशंकर प्रसाद का योगदान अविस्मरणीय है । इस पूस्तक में हमनें प्रसादजी की कुल 74 कहानियों का संकलन प्रकाशित किये हैं । इन कहानियों में मानव–जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रदर्शित किया गया है । करुणा, वात्सल्य के अतिरिक्त पारिवारिक संबं/ाों की गहराई तक पहुँचने का प्रयास प्रसादजी ने अपनी कहानियों में बखूबी किया है । शौर्य और वीरता की भी झलक उनकी कहानियों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है । काव्य, नाटक, कथा–साहित्य, आलोचना, दर्शन, इतिहास सभी क्षेत्रें में उनकी प्रतिभा अद्वितीय रही । हमारा प्रयास इस महान् कहानीकार की रचनाएँ पाठकों के बीच अ/िाक–से–अ/िाक पहुँचें और वे इनका भरपूर लाभ उठाएँ । जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889– 15 नवंबर 1937) हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्/ा–लेखक थे । वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं । आ/ाुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है । वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता,
नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं । कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग /ाारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही ग
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