Description
जयशंकर प्रसाद ने जिस समय नाटकों की रचना आरंभ की उस समय भारतेन्दु द्वारा विकसित हिन्दी रंगमंच की स्वतंत्र चेतना क्रमशं क्षीण हो चुकी थी । प्रसाद जी ने अपने नाटकों की रचना हेतु गहन चिन्तन–मनन को एक आव’यक उपादान के रूप में अपनाया, जिसके स्प”ट प्रमाण उनकी रचनाओ में पर्याप्त रूप से मिलते हैं । जयशंकर प्रसाद की इस गहरी चिंतन’ाीलता ने हिन्दी नाटकों को पहली बार बौद्धिक अर्थवत्ता प्रदान की । उनके नाटकों की भूमिकाएँ उनकी अनुसन्/ाानपरक तथ्यान्वे”ाी द‘”िट का स्प”ट संकेत देती हैं । इस पुस्तक में 12 नाटकों का संक्लन प्रस्तुत किया गया हैै —स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, करुणालय, कल्याणी परिणय, अग्निमित्र, प्रायश्चित, सज्जन
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889– 15 नवंबर 1937) हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्/ा–लेखक थे । वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं । आ/ाुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है । वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं । कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रति”िठत हुए हैंय नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग /ाारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है ।
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